Advertisement
Homeबायोग्राफीअभिजीत भट्टाचार्य का जीवन परिचय | Abhijeet Bhattacharya Biography In Hindi

Related Posts

Advertisement

अभिजीत भट्टाचार्य का जीवन परिचय | Abhijeet Bhattacharya Biography In Hindi

90 के दशक में अभिजित की आवाज से सजी शाहरुख खान की कुछ ऐसी फिल्मे आई जिनमे लगता था की शाहरुख खान की आपनी खुद की आवाज है। अभिजीत भट्टाचार्य  की आवाज में वो रोमांस है जो हमारे रोम रोम को रोमांचित कर देता है।

इनका परिचय में एक बात और जोड़ना चाहेंगे की इनके बेवाक बोल। सुरुली आवाज के साथ साथ इनकी बेबाक बाते भी मिडिया में चर्चा का विषय बनती है। इनके खाते में एक से बढ़कर एक हिट फिल्मे नगमे है,साथ ही साथ एक से एक बयानों से उपजे विवाद भी है।

Join Us

खेर विवादों को छोड़ते है और बात करते है अभिजीत भट्टाचार्य का मुंबई के एक बंगाली परिवार में 30 अक्टूबर 1958 को हुआ था। आपने चार भाई बहनों में ये सबसे छोटे है वैसे तो इनका जन्म मुंबई में हुआ,लेकिन इनकी परवरिश और पढाई लिखाई सब कुछ कानपूर में हुईं।

इनके पिताजी धीरेन्द्र नाथ भट्टाचार्य एक बिज़नस मेन थे,इन्होने कानपूर के मशहूर श्री राम कृष्ण मिशन आश्रम से हाई स्कूल और बी.एन.एस.डी इंटर कॉलेज से बारहवी की पढाई की। और फिर कानपूर के ही क्रिस्ट चर्च कॉलेज से बी.कॉम किया।

Join Us

पिताजी चाहते थे की अभिजीत एक चार्टेड अकाउंटटेंट बने लेकिन इनका मन गायिकी में लगा हुआ था। कानपूर के स्टेज शो में भी हिस्सा लिया करते थे और 1981 में बी.कॉम की पढाई पूरी करने के बाद इनके पिताजी इन्हें चार्टेड अकाउंट की पढाई करने के लिए मुंबई भेज दिया।

और माया नगरी मुंबई में पहुचने के बाद इनकी सपनो को एक नई उड़ान मिली। और इन्होने तय किया की एकाउंट्स में दिमाग न लगाकर मै एक सिंगर बनूँगा। किशोर कुमार इनके आदर्श थे अभिजीत का संघर्ष माया नगरी में शुरु हो चूका था,मुंबई में ये स्टेज शो भी करने लगे। और काम की सिलसिले में अभिजीत म्यूजिक डायरेक्टर से मिलते रहते थे।

Join Us

और अभिजीत किशोर कुमार के गायिकी के दीवाने थे मुंबई में आपने मुस्किल दिनों में अभिजीत आपने कई ही आत्म विश्वास उनके साथ रहा। आखिर वो दिन भी आ ही गया जब इनका सपना पूरा हुआ। आर.डी.बर्मन ने उन्हें खुद फ़ोन किया। अभिजीत की ख़ुशी का ठिकाना न रहा और राहुल देव बर्मन ने आपने संगीत निर्देशन में अभिजीत भट्टाचार्य को प्लेबैक सिंगिंग का मोका दिया।

और वो फिल्म थी “आनंद और आनंद” जिससे देव आनंद ने आपने बेटे सुनील आनंद को लंच कारने के लिए बनाया था। इस फिल्म के बाकि गाने लता जी,आशा जी और किशोर कुमार जैसे दिगाज कलाकारों ने गए हुए थे।

अभिजीत के गुरु इनसे कहा करते थे की वे खुद को शास्त्रीय संगीत में ही पूरी तरह से न झोके। बल्कि इनकी आवाज की जो मिलोडी है उसे बचा के रखे और अभिजीत ने इस बात को गठ बांध कर आपना करियर बनाया। अभिजीत के करियर के बतोर प्लेबैक सिंगिंग की शुरुवत तो हो चुकी थी लेकिन आगे का रास्ता काफी चुनोतियो से भरा था।

दरशल फिल्म “आनंद और आनंद” को कामयाबी नहीं मिल पाई, और अभिजीत एक छोटी सी नोकरी के बल पर माया नगरी में आपने जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। संघर्ष का ये दोर काफी लम्बा चला करीब पांच से छ: साल तक अभिजीत को वो पहचान बनाने का मोका ही नहीं मिला जिसके वे हक़दार थे।

असल मायने में अभिजीत की किस्मत बदली 1990 में,जब 1990 में दीपक शिव दासानी एक फिल्म बना रहे थे,तो दीपक शिव दासानी के लिए भी उनके करियर की ये पहली बड़ी फिल्म थी। ऐसा इसलिए की “बागी” में सलमान खान बतोर एक्टर काम कर रहे थे जो की आपने फिल्म “मैंने प्यार किया” से काफी हिट हो चुके थे।

और “फिल्म” बागी में आनंद मिलन ने अभिजीत भट्टाचार्य  से तीन गाने गवाए और इन तीनो गानों में फिल्म नशे को प्लेबैक सिंगिंग का एक नया स्टार दे दिया। वे स्टार कोई और नहीं बल्कि अभिजीत ही थे और वो तीनो गाने थे चांदनी रात है तु मेरे साथ है,कसम से बड़ी कसम प्यार की और चंचल शोक हशीना और इस फिल्म का संगीत को खूब सराहा गया।

और आगले ही साल नादिम श्रावंत के संगीत निर्देशन में “दिल है की मानता नहीं” में ये गाना लोगो ने खूब पसंद किया। और फिर खिलाडी के गानों ने भी उन्हें कामयाबी दिलायी और फिर 1981 में जब अभिजीत ने आपना शहर कानपूर छोड़ा था तो माया नगरी में कामयाबी के जो सपने देखे थे वो 1991 के आते ही सही रास्ते पर आ गए।

जी हा बिलकुल करीबन 10 साल का वक्त लग गया “खिलाडी” फिल्म के बाद उनके पास लगभाग हर बड़े संगीत निर्देशकों के साथ काम करने का न्योता था। आगले करीब 15 साल तक अभिजीत ने कई शानदार नगमे हिंदी फिल्मो को दिए है और इसी दोरान 1995 में उन्हें फिल्म मिली “ये दिल लगी” और ये दिल लगी के मोज भरी गाने “जब भी कोई लड़का देखू” फिल्म फेयर्स अवार्ड्स के लिए नोमिनेट भी किया गया।

लेकिन पहली बार फिल्म फेयर आवार्ड जितने के लिए 1998 तक का इंतजार करना पड़ा। और 1998 में फिल्म “येश बोश” के जरिये वो शाहरुख खान के आवाज बने। “मै कोई ऐसा गीत गाऊ की आरजू जगाऊ” और उनका बेस्ट प्लेबेक सिंगर का जितने का ख़्वाब इसी गाने से पूरा हुआ। 

और इसी फिल्म का एक और गाना “बस इतना सा ख़्वाब है” ये गाना भी सुपरहिट हुआ। ये वो दोर था जब टेलीविजन का रियलिटी शो जमकर चल रहे थे। और अभिजीत को भो ऐसे रियलिटी शो में जज बनने का मोका मिला। और इन्ही कार्यकर्मो के दोरान नए गायकों के टिप्पणी को लेकर चर्चा में आने लगे थे।

और इन्होने आपने एक इंटरव्यू में कहा है की नए कलाकारो का एक सिंडिकेट है जो यहाँ वहा घूमकर रियलिटी शो में हिस्सा लेते है। बहुत सरे लोगो को उनमे एक नकारात्मक दिखने लगी थी फिल्मो में गायिकी का दोर भी तेजी से बदल रहा था।

जरूर पढ़ें: ए आर रहमान का जीवन परिचय

2005 के बाद इक्का दुक्का गानों को छोड़ दे तो उनके पास गिनाने के लिए कोई हिट फिल्मे नहीं थे और इन्होने फिल्मो गानों के आलावा आपने एल्बम तेयार किए। जिसमे और आगे सफलता मिल पाए,इसी दोर में वे आपने गायिकी से ज्यदा आपनी बातो से चर्चा में रहने लगे।

सलमान खान के फैसले पर उन्होंने एक आपतिजनक बाते लिखी और सोशल मिडिया में एक पत्रकारों को लेकर टिपण्णी की वजह से उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया। और उनका ट्विटर अकाउंट भी सस्पेंड कर दिया गया खेर कुछ भी हो बॉलीवुड संगीत में इनका जो योगदान है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। तो उम्मीद करता हु की दोस्तों ये अभिजीत भट्टाचार्य की ये स्टोरी आपको जरुर पसन्द आई होगी तो आपने दोस्तों से शेयर जरुर करे।  

Join Us

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Join Us

Latest Posts

Advertisement