यह फिल्म अरबिंदा समिता वीरा राघव 2018 की एक्सन के साथ साथ ड्रामा फिल्म है इस फिल्म का निर्देशन एस.राधा कृष्णा के दवारा हरिका और हसीन पर इस फिल्म को फिल्माया गया है।
और साथ में त्रिविक्रम श्रीनिवश के दवारा ये निर्देशित किया गया है इस फिल्म में एन.टी रमा राव जूनियर और साथ में पूजा हेंगडे,जगपति बाबु,सुनील,नविन चंद्रा,ईशा रेब्बा और सुप्रिया पाठक ने इस फिल्म में अहम भूमिका निभाई है। और संगीत की बात करे तो एस थमान के दवारा दिया गया है।
यह फिल्म एक ऐसे युवक के इर्द गिर्द घुमती है जिसका जीवन गाव के ही गुंडे के साथ लड़ाई में उलझने के दोरान वह बदल जाता है। और तुरंत इस गाव से भगकर हैदराबाद चला जाता है। और वो उन दोनों गावो के बीच हिंसा में शान्ति लाने के लिए वह वहा से भाग जाता है। जिनमे इनके लोग करीबन 30 सालो से झगडे में ही लगे रहते है।
जब दो गाव के बीच 30 सालो से लम्बी लड़ाई के कारण नरप्पा रेड्डी के नेतृतव में कॉमेडी और बारसी रेड्डी की अगुवाई में नल्लागुडी दोनों दलों के लोगो को छती पंहुचा रहा था।
और नरप्पा रेड्डी का बेटा वीर राघव रेड्डी,जो की 12 साल से लन्दन में था तो वो आपना वतन वापस लोट आता है। और अपने घर के रस्ते मेढ ही विपाछ दवारा हमला करने पर अपने पिताजी को खो देता है। और उसके बाद वह अपने पिताजी का बदला लेने के लिए सोचता है।
और उसके बाद वह लड़ाई में हिस्सा लेता है बस्सी रेड्डी के आदमियों को मरता है और बाद में अपने आप को भी छुरा मार लेता है और उसके बाद भी ये हिंसा शान्ति नहीं होती।
और वह हैदराबाद जाने के लिए फैसला लेता है क्योंकि वो सोचता है की आगर मै यहाँ से चला जाऊंगा तो झगडा कम से कम तो होगा। क्योंकि विपछ के पास लड़ने के लिए कोई भी नहीं होगा।
और वह हैदराबाद चल जाता है और नीलाम्बरी के साथ दोस्ती करता है और उस परिस्थिति में उसे अर्विन्दा और सुनंदा के परिवार के साथ रहने के लिए मजबूर कर देती है। अर्विन्दा उनकी मान्यतावो और विचार प्रणाली को बहुत ठेस पहुचाई है। और इसी बीच बस्सी रेड्डी को जीवित पाया जाता है।
और वीरा राघव का पीछा करते हुए अपने बेटे जो की बाला रेड्डी के नेतृतव में अपने गैंग्स को आदेश दे देता है। इसी दोरान वीरा राघव जो की इस हिंषा के बारे में कहानी लिखने में अर्विन्दा और सुनंदा के भाई की मदद भी करती है।
जो की ये कहानी उनके अपने जीवन से ही प्रेरित कर ये कहानी प्रकाशित हो जाती है और साथ में बस्सी रेड्डी के दवारा देखि गई जो की वीरा राघव के जीवन के एकदम बराबर है।
और बस्सी रेड्डी कॉमेडी अपने गुंडे को आदेश दे देता है की वह अपने स्कूल से ही दोनों को अर्विन्दा और सुनंदा के भाई को अपहरण कर ले। और गुंडे अर्विन्दा और सुनंदा के भाई को अपहरण करने का प्रयास करते है।
लेकिन बाद में वीरा राघव दवारा रोक लिया जाता है जो की यह सुनिश्चित करते हुए कहता है की किसी की भी हत्या नहीं होनी चाहिए। और अखीर गुंडों से सीखता है की बस्सी रेड्डी अभी भी जीवित है।
और जल्द ही अर्विन्दा को बाला रेड्डी ने अपहरण कर लिया,लेकिन उसे वीर राघव दवारा बचा लिया गया। और जिसके कारण उसे फ़ोन पर ही मरने की धमकी दी गयी और बाद में वह अपने पिताजी को कैसे मारा गया था वो कहानी अर्विन्दा और सुनंदा को समझाता है।
और उसके बाद वो अपने गाव के लिए निकल जाता है अर्विन्दा की ये साजिश है और नीलाम्बरी के साथ वीरा राघव का गाव। और इस गाव में झगड़े से प्रभावित लोग के बारे में डोकुमेंटारी बनाते है और उसके बाद वीरा राघव बाला रेड्डी और साथ में कुछ मंत्रियो के साथ इस बैठक में हिस्सा भी लेते है। और वह उन्हें लड़ाई रोकने के लिए पूरी तरह से मानाने की कोशिश करता है।
लेकिन बाद में बस्सी रेड्डी के बेटे इस लड़ाई को पालन करने से पूरी तरह से मना कर देता है। और वीरा राघव शान्ति संधि के लिए उन्हें आछे तरह से उन्हें समझाने का प्रयास करती है। जिसके बाद बस्सी रेड्डी,बाला रेड्डी को आखिर मार ही देता है।
और अर्विन्दा और नीलाम्बरी जो की अपनी कर के टूटने के वजह से बस्सी रेड्डी के घर पर ही रह रहे थे। उन्ही सच्चाई को जानने के बाद उसको बंदी बना लिया जाता है।
और इसके बाद वीरा राघव से बस्सी रेड्डी ने संपर्क तो कर लिया और उन्हें एक खुले मैदान में आने के लिए बुलाती है। बस्सी रेड्डी ने अर्विन्दा की बाह पर चाकू से वर भी किया। नीलाम्बरी और वीर राघव से पूरी तरह लड़ने की कोशिस करता है।
और वो दुसरे लड़ाई शुरु नहीं करने के दोरान चकमा देता रहता है। साथ में बस्सी रेड्डी ने उसे बताया की उसे बाला रेड्डी को भी मार दिया है और अब कोई भी इस शान्ति में खड़ा नहीं होगा। और जब उसके गुंडे वीर राघव की बात सुनकर उनका दिल बदल गया।
और अर्विन्दा और नीलाम्बरी को धमकाने के बाद भी अस्पताल ले गया। और बाला रेड्डी की मोत के कारण गुस्सा,जो की उसकी मात्र एक आशा थी की वीर राघव ने बस्सी रेड्डी का पेट कट दिया है और बाद में उसे आग लगा दी ताकि कोई भी उसके मोत के बारे में जन न सके।
उसके बाद वीरा राघव बस्सी रेड्डी की पत्नी को भी स्वीकार कर लेती है। की उसने ही बस्सी रेड्डी को मार दिया है और बाद में जो की अपने पति की मोत पर ही अपने बेटे की मोत पर नाराज हो जाते हैं।
और वो उस हथियार को आच्छी तरह से साफ कर देता है और वीर राघव को उस जगह पर के जाया जाता है जहा पर गाव के एक दुसरे के खून के बाद ही शिकायत भी दर्ज करती है। की उसके पति ने ही उसने बेटे को मार डाला और वो भाग गया।
जिससे की अब गाव में लड़ाई बिलकुल ख़त्म हो जाती है और वीरा राघव ने उन्हें एक विधायक के रूप में ही नोमिनेट किया जिससे की उन्होंने भरी मतों से जीत जाता है।