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अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी | Atal Bihari Vajpayee Biography In Hindi

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अब हमारे बीच नहीं रहे लंबे समय से बीमार चल रहे वाजपेयी को 11 जून को एम्स में भर्ती किया गया था। लेकिन पिछले कुछ घंटो में ही तबियत कुछ ज्यदा बिगड़ जाने की वजह से अब वह हमें छोड़कर जा चुके है।

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दोस्तों अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे व्यक्ति थे जिनके विरोधी भी इनका दिल से सम्मान करते थे। और फिर एक सच्चे राजनेता के तोर पर अटल बिहारी वाजपेयी जी अपनी एक अलग छवि मेहनत और लगन और निष्ठा से बनायीं थी।

और शब्दों के माध्यम से अपने विचारो को लोगो तक पहुचाने की अद्भुत कला ने ही इनको राजनीती में एक अलग पहचान दिलाई।

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वैसे तो इतने महान शख्ससियत के पुरे लाइफ में कुछ शब्दों में समेट पाना बहुत ही मुस्किल काम है। लेकिन फिर भी इस ब्लॉग के जरिये हम अटल बिहारी वाजपेयी जी की पूरी लाइफ को जानने की कोशिस करते है।

तो दोस्तों इस कहानी की शुरुआत होती है 25 दिसंबर 1924 से जब मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर में अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म हुआ।

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इनके पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी था जो की एक शिछक थे। और इनकी मा का नाम कृष्णा देवी था। हलाकि अटल जी के पिता एक शिछक होने के साथ साथ एक प्रसिध कवी भी थे। और शायद अपने पिता जी से ही अटल के अन्दर ही कविताये लिखने की रूचि आई।

अटल जी ने अपनी शुरुअति पढाई सरस्वती शिशु मंदिर और गोरखी बड़ा ग्वालियर स्कूल से ही और ग्रेजुएशन की पढाई के लिए इन्होने महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज में दाखिला ले लिया। और आगे चलकर इन्होने डी.ए.भी कॉलेज कानपूर में मास्टर ऑफ़ आर्ट्स में पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर लिया।

और दोस्तों अटल जी शुरु से ही राजनीती में काफी ज्यदा लगाव रखते थे। और इसलिए जब वे 15 साल के थे तब इन्होने आर एस एस ज्वाइन किया था और फिर आगे चलकर 1942 में क्विट इंडिया मूमेंट के दोरान अरेस्ट भी कर लिया गया।

और इसी वजह से उन्हें 23 दिन जेल में भी गुजरने पड़े। हलाकि असल मायने में अटल जी का राजनीती में आगमन हुआ सन 1944 में जब इन्हें ग्वालियर में आर्य समाज का जेनेरल सेक्रेट्री के रूप में नियुक्त हुए।

इसके आलावा तो वे आर एस एस के साथ तो ये पहले से जुड़े हुए थे। और इस उम्र तक इन्होने डिसाइड कर लिया था की देश की सेवा के लिए ये शादी नहीं करेंगे।

और अब इनका कद धीरे धीरे राजनीती के ग्वलियर में बढ़ने लगा था। और 1959 में वो पहली बार भारतीय जन संघ पार्टी में रहते हुए दो अलग अलग जगहों से लोकसभा का चुनाव लडे। जिसमे की वो मथुरा से तो जीत नहीं सके लेकिन बलरामपुर से जितने में कामयाब हो गए।

और इसी समय इसके भाषण देने की कमल की छमता को देखकर उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने कहा की अटल बिहारी वाजपेयी जरुर ही किसी दिन भारत के प्रधनमंत्री बनेगे।

और इस पार्टी को आगे ले जाने की जिम्मेदारी अटल जी जवान कंधो पर था। हलाकि आगे चलकर 1975 से 1977 में इमरजेंसी के दोरान कई सारे नेताओं के साथ गिरफ्तार किया गया। लेकिन जब 1977 में दुबारा चुनाव हुए तो जनता दल ने सरकार बनायीं। जिसमे मोररजी देसाई देश के प्रधानमंत्री और अटल जी को उस वक्त का विदेश मंत्री बनाया गया।    

और दोस्तों अटल जी एक ऐसे विदेश प्रधानमंत्री थे जिन्होंने उनईटेड नेशन जेनरली असेम्बली में हिंदी भाषा में अपना भाषण दिया था। हलाकि 1979 में जनता दल की सरकार गिर गयी और तब तक अटल जी खुद को एक सम्मान राजनेता के तोर पर स्थापित कर चुके थे।

और सन 1980 में अटल जी ने अपने लंबे समय से मित्र रहे लाल कृष्ण अडवाणी और भेरोसिंह शेखावत के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की।

और इस तरह से पार्टी के पहले अध्याछ नियुक्त किए गए। हलाकि 1984 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को केवल 2 ही सिट हासिल हुई। इसमें एक अटल जी को और दूसरा लला कृष्ण अडवाणी जी को। लेकिन इस हर से अटल जी को कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा और वो अपना कम करते रहे।

और फिर धीरे धीरे आगे चलकर 1996 तक अटल जी की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वह पहली बार 16 माई 1996 को भारत के प्रधानमंत्री बने। लेकिन दुर्भग्यवस् यह सरकार चुकी गठबंधन की सरकार थी इसलिए ज्यदा दिन तक चल नहीं सकी। और फिर 13 दिन के बाद अटल जी ने इस्तीफे देकर सरकार को गिरा दिया।

और फिर आगे चलकर 1998 में जब एक बार फिर से चुनाव लाडे तो यहा पर बीजेपी ने एन डी ए के साथ मिलकर फिर से सरकार बनायीं। लेकिन यह सरकार भी 13 महीने में ही गिर गयी लेकिन दोस्तों इसी दोरान अटल बिहारी वाजपेयी पोखरण न्यूक्लीयर टेस्ट करने के आदेश दिए थे।

हलाकि सरकार गिरने के कुछ समय बाद से फिर से चनाव कराये गए और और फिर से बीजेपी के नेतृत्व में एन डी ए गठबंधन को 303 सिट मिले।

और इस तरह से 13 अक्टूबर 1999 को अटल जी को तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ ली। और इस बार भी अपना डर पूरा करने में कामयाब रहे। और अपने कार्यकाल के दोरान इन्हें बहुत सारे अच्छे काम भी किए।

जिससे की भारत की इकोनोमी काफी आगे बढ़ सके लेकिन 2004 में चनाव के हर के बाद से इन्होने अपनी उम्र को देखते हुए राजनीती से सन्यास ले लिया।

लेकिन आज भी हर पार्टी के राजनेता इन्हें अपना आदर्श मानते है और देश के हित में किए गए शानदार काम के लिए इन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया जा चूका है।

साथ ही इनकी देशभक्ति और देश के प्रति सोच अब इनके बहुत सारे किताब और कविताये के जरिये भी देख सकते है। लेकिन दोस्तों अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन वह हमारे दिलो में हमेशा जिन्दा रहेंगे।

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