कहानी: आयुष्मान झा जो की 80 दशक में महत्वाकांछी लेखक है जो की एक सुदूर घटी में रहते है और ऐसे किताब लिखते है की उबाऊ है और दुखी होकर वह एक अच्छे थिएटर में जाता है और अपनी इस धार्मिक जीवन में पहली बार पोर्न देखता है। और उसके बाद वह मुठभेड़ के बदले में उसे जो की अपना ही कल्पना को जंगल में चलने और वासना सिखने के लिए प्रेरित करती है।
फुल रिव्यु: राजाराम जो की एक बहुत ही साधारण इन्सान है और वह प्रेम प्रसंग में विश्वास करते है और वह प्रेम प्रसंग में विश्वास करते है और अपनी चाचा की झुंझलाहट बहुत ही अधिक विश्वास करते है। जब इसको किसी से प्यार हो जाता है तो वह शादी करना चाहते है।
लेकिन युवा लेखक लेखन और सहित्य के लिए बहुत ही ज्यदा जूनून दिखाते है। लेकिन फिर भी उनके पछ बिलकुल भी काम नहीं करता जो की इनका प्रशंसक स्नूज़ फेस्ट यह नहीं चाहता है की उसके बहुत ही ख़राब कंटेंट लिखने में जोर देता है।
शुरुआती दोर में हिचकिचाहट और पोर्न फिल्मो की दुनिया में मोका मिलने के साथ राजाराम एक के बाद एक कहानिया लिखना शुरु करते है। और जल्द ही वह मस्तराम के पेन नाम को मन लेता है।
और बात करे आज की दुनिया में पोर्न और सहित्य या इरोटिक के नाम से जानने वाली चीजो को प्रकासित करना शुरु कर देता है। और इस रेली में रातोरात ये सफल हो जाते है।
जो एम्एक्स प्लेयर के मस्तराम के बारे में कुछ जानकारी है जो की सही मायने में प्रतीत होती है। और एक के लिए एक उपन्यासर की अवधारणा निर्थारक जीवन के अनुभवो से बड़े पैमाने पर इरोटिक का निर्माण करने में सफल हो जाते है, और एक विजेता की तरह लगता है।
और फिर लेखन के इस मायने में जो की सबसे उपर पर है और इस कहानी की 10 एपिसोड न केवल अपनी कर्कस सामग्री के साथ इनका दिल भी दोड़ने लगता है। लेकिन वकय में प्रत्येक अध्याय के साथ यह शब्द जो की लेखक आर्यन सुनील की पेंटिंग में भी काफी चमत्कार है।
हलाकि जो की आयुष्मान झा की रुसी के उदेश्यों में बाधाये और बेचनी काफी स्पस्ट दिखाई देता है। लेकिन फिर भी इन्होने एक शर्मीले और मजबूत लेखक की भूमिका निभाई है। और साथ में रानी चटर्जी की स्थानीय मोहनी और स्रेक वेंडर रानी के स्वछिका भूमिका बहुत ही मोहक है। और ये पूरी तरह से हिस्से का भी मालिक है।
राजाराम की देसी प्रेमिका जो की मधु के रूप में तारा अलीशा बेरी के अभिनय को कुछ चीजे चमकाने की जरुरत नही थी। और वह एक पहाड़ी सिम्प्टन की भूमिका के लिए भी थोड़ी बहुत जो है पॉश लग रही थी। और एक बता सकती थी की वाकई में वह अपनी अभिनय ही कर रही थी और बिल्कुल भी किसी तरह की प्रतिक्रिया तक नहीं दे रही थी।
हलाकि सेटिंग दूरस्थ और ग्रामीण थी इसलिए वो कैमरे के पीछे फहरुख मिस्त्री क काम बहुत ही सुन्दरता और समान दृश्यों को कैमरे में कैप्चर करने के लिए एक अलग ही विशेस उल्लेख के योग्य है।
और यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात ये है की ये कथन मुख्य रूप से लेखक के योंन जागृति और इसके कल्पनवो को सहित्य के रूप में जरी करने में भी केन्द्रित है। और जो की वो इनके रचनात्मक मन भी नहीं मिलती है। पर कामुक मीनारों को जो की काफी लम्बा लगता है जो की एक बिदु से परे ही खीच लिया गया है।
ये बाते तजा और आकर्षक भी है और साथ में अभिनेताओं ने अपने हिस्से को अच्छी तरह से भी खीच लिया गया है। लेकीन इस श्रृंखला का एक पहलु जो शायद इसका जोड़ नहीं है और इसका समय है।
80 के दशक में इस प्रकृति की एक श्रृंखला को बोल्ड,पथ –ब्रेकिंग और जो की इरोटिक की शैली में एक पूरी तरह से नॉक आउट मना जाता था। लेकिन इसी के साथ 2020 में जब हमारे पास हमारे निपटन में इतने सारे मंच है। की मस्तराम केवल सेक्स पर पूरी तरह से सबक प्रदान करने का प्रबंधन करता है।