दोस्तों आज हम इस ब्लॉग में बात करने जा रहे है शनिवार वाडा फोर्ट के बारे में जो की ये भारत में टॉप मोस्ट हानटेड प्लेस में शामिल है। शनिवार वाडा फोर्ट महारष्ट्र के पुणे में स्तिथ है इस किले की नीव शानिवार को राखी गयी थी इसलिए इसका नाम शनिवार वाडा पड़ा। यह फोर्ट आपनी विभिनता और एतिहासिक के लिए ही प्रसिध है।
इस फोर्ट का निर्माण 18वी शातब्दी में मराठा साम्राज्य पर शासन करने वाले पेशवो ने करवाया था। ये किला 1808 तक पेशवावो की प्रमुख गति रहा था लेकिन इस किले के साथ एक कला आध्याय भी जुड़ा हुआ है। इस किले में 30 अगस्त 1773 की रात को 18 साल के नारायण राव जो की मात्र 18 साल की उम्र में ही पाचवे पेशवा बने थे।
इस सद्यन्त्र करतवो ने हत्या कर दी थी,जब हत्यारे उनके हत्या करने आये तो डर कर आपने चाचा के पास दोड़कर चले गए और इन्होने कहा काका “मालवा बचवा” इसका मतलब होता है चाचा मुझे बचावो और ये कहते हुए आपने चाचा की और दोड पड़े वे वहा तक पहुच भी नहीं सके और वाही पर उसे मार दिया गया।
अभी भी आस पड़ोस के बहुत से लोग कहते है की किले में उस बच्चे नारायण राव की आत्मा आज भी भटकती है। ओ इसके द्वारा बोला गया अखरी शब्द काका माला बचवा आज भी इस किले में सुनाई देता है। इसलिए इस किले को टॉप मोस्ट हाँटेड प्लेस में शामिल किया गया है।
हम इसके निर्माण के बारे में और अंग्रेजो के आधिकार का और नारायण राव की सद्यन्त्र कर्तावो के द्वारा हत्या को विस्तर में बताते है। शनिवार वाडा के फोर्ट का निर्माण और किले की नीव पेशवा बाजीराव प्रथम ने 10 जनवरी 1713 को दिन शानिवार को राखी गयी थी।
इसका उदघटन 22 जनवरी 1732 में हुआ था हलाकि इसके बाद भी किले के अन्दर कई सारे इमारते है और साथ में एक लोटस फाउंटेन का निर्माण हुआ था। शनिवार वाडा फोर्ट का निर्माण राजस्थान के मजदूरो ने ही किया था जिनको काम पूरा करने के बाद पेशवा ने नइक की उपाधि से नवाजा गया था। और इस किले में लगी टिक की लकड़ी जुनर के जंगलो से,पत्थर चिंचवड की खदानों से तथा चुना जिजुरी के खदानों से लाया गया था।
इसमें 27 फ़रवरी 1828 को अज्ञात कालो से मिलकर आग लगी थी और इस तरह इस आग को बुझाने में करीबन 7 दिन का वक्त भी लग गया। और इसी किले के परिसर में बने कई इमारते पूरी तरह से नस्ट हो गयी थी अब उनके केवल अवसेस ही बचे है। यदि हम इस किले की संरचना की बात करे तो अन्दर प्रवेश करने के लिए पांच दरवाजे है।
पहला तो दिल्ली दरवाजा,ये इस किले का सबसे प्रमुख दरवाजा है जो की उतर दिशा मतलब की दिल्ली की और खुलता है इसलिए इसे दिल्ली दरवाजा कहते है। ये इतना उचा और चोडा है की फोर्ट में सभी व्यक्ति आराम से आ जा सकते है।
और साथ में इस दरवाजे पर 70 से ज्यदा नुकीली,दरवाजा के दोनों और लगी हुई है जो की हाथी के माथे को आराम से रोक सके। और आगर हाथी अन्दर जाने की कोशिस करता है तो आपने माथे से टकराकर बुरी तरह से जख्मी हो जायेगा और दरवाजा के दाये तरफ अन्दर जाने के लिए छोटा सा एक दरवाजा भी बनाया गया है जो की ये दरवाजा सैनिको के आने जाने के कम में आता था।
और दूसरा दरवाजा की बात करे तो वो है मस्तानी दरवाजा,ये दरवाजा दक्षिण के और खुलता है ये दरवाजा बाजीराव की पत्नी मस्तानी के लिए आने जाने के लिए बनाया गया था,इसलिए इस दरवाजा को मस्तानी दरवाजा भी कहते है। और वैसे इस दरवाजा को अली बहदुर के नाम से भी जानते है।
और तीसरा है खिड़की दरवाजा जो की ये पूरब दिशा की और खुलता है और साथ में ये दरवाजे में खिड़की बनी हुयी है इसलिए इसे खिड़की दरवाजा भी कहते है। और चोथा गणेश दरवाजा,ये दरवाजा दक्षिण-पूरब दिशा में खुलता है और ये दरवाजा के परिसर में स्थित गणेश रंग महल के पास स्तिथ है इसलिए इन्हें गणेश दरवाजा के नाम से भी जानते है।
पांचवा और अखरी दरवाजा जिसका नाम जम्बू दरवाजा या नारायण राव दरवाजा भी कहा जाता हैं,ये दरवाजा अक्सर दक्षिण दिशा में खुलता है इसलिए इन्हें नारायण दरवाजा भी कहते है और ये दरवाजा मुख्यतः दाशियो को महल में आने जाने का दरवाजा था।
नारायण पल राव पेशवा की हत्या के बाद उसकी लाश के टुकड़े को इसी रस्ते के दवारा बहार लाया गया था। इसलिए इस दरवाजा को नारायण दरवाजा भी कहा जाता है अब इसके अन्दर इमारते की बात करे तो इस किले में मुख्यतः तीन महल थे। तीनो की 1828 में लगी आग लगकर जलकर नस्ट हो गयी थी अब तो केवल इनके अवसेस बचे हुए है।
इस किले में सात मंजिला ईमारत भी थी जो की सबसे उची चोटी से 17 किलोमीटर दुर जनेश्वर मंदिर का शिखर भी दिखाय देता था ये ईमारत भी साथ में जलकर पूरी तरह से ख़त्म हो गयी। उन किलो के अन्दर छोटी मोटी ईमारत ही अब सही सलामत बची हुई है।
लोटस फाउंटेन इस किले की मुख्य आकार्सक कवंती आकर का एक फाउंटेन है जिसे की इसे हजारो करंचे भी कहते है। लेकिन इस फाउंटेन से आज भी दुखद इतिहास सामने निकलकर आता है इसमें गिरकर घायल होने से एक राजकुमार की मृत्यु भी हो गयी थी।
सन 1818 में पेशवा बाजीराव तृतीय ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सर जान मेर्कन को गद्दी सोप दी गयी। इस तरह से पेशावावो की शान रहे इस किले पर पूरी तरह से आपने आधिकार कर लिया गया। अब बरी आती है नारायण राव की हत्या के बारे में जानने का,पेशवा नानासाहेब के तिन पुत्र थे विशवसराव,माधवराव प्रथम और नारायणराव।
इनमे से सबसे बड़े पुत्र विशवसराव जो की पानीपत की तीसरी लड़ाई में मरे गए थे। नाना साहेब के मृत्यु के उपरांत माधवराव प्रथम को गद्दी पर बेठाया गय,पानीपत की तीसरी लड़ाई में माधवराव को भी मरने की रणनीति बनाई जा रही थी।
लेकिन उनकी तरफ से बनाया गया सभी रणनीतिया कामयाब नहीं रही और पुत्र 16 साल के उम्र में ही नारायणराव पेशवा बने। नानासाहेब के एक छोटे भाई रघुनाथराव और उनकी पत्नी कहती थी की नारायणराव को पेशवा बनाने के कारण उनके काका रघुवीर और काकी आनंदी बाई खुस नहीं थे। वे खुद ही पेशवा बनना चाहते थे,एक बालक का पेशवा बनना उन्हें पसंद नहीं था।
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उनके साम्राज्य में ये किलो का शिकारी कबीला रहता था जो की गति कहलाता था। जो की वो बहुत ही मारक लड़ाकू थे और नारायणराव के साथ उनके संबंध ख़राब हुए लेकिन वह रघुनाथ को पसंद करते थे और इसी का फायदा उठाते हुए उनके मुखिया समोर सिंह को एक पत्र भेजा। और इसमें लिखा था की नारायण राव का धरा और इसका मतलब होता है की नारायणराव को बंदी बनावो।
लेकिन आनंदी बाई को यहाँ एक खुबसूरत मोका नजर आया और उसने आपने एक शब्द को बदल दिया। और कह दिया नारायणराव को मारा, इसका मतलब था की नारायणराव को मरो,पत्र मिलते ही गद्दीयो के एक समूह ने रात को महल में हमला का कर दिया जो रस्ते की हर बागा को हटाते हुए नारायणराव की और बढे।
जब नारायणराव ने देखा की गद्दी के समूह खून बहाकर उसकी तरफ आ रहे है तो वो आपनी जान बचाने के लिए आपने काका की कमरे की और भगा और चिल्लाया काका मालवा बचवा बोलते हुए गए और उनके काका के पास पहुचने से पहले ही इनको मार कर टुकड़े टुकड़े कर दिए गए।