ये कहानी इस किले की उचइयो की वजह से प्रसिध है और सबसे सुरछित किला है ये वो किला है जो पुणे का रखवाला था उस समय में जो भी जीतता पुणे शहर पर उसी का राज होता था और जिसका नाम सिंहगढ किला है।
पुणे शहर से पश्चिम दिशा में तक़रीबन 25 किलोमीटर की दुरी पर विराजमान है संयादरी पर्वत माला का दिव्य आभूषण सिंहगढ। इस किले को पहले कोंढाना के नाम से जाना जाता था और इस किले की उचाई तक़रीबन 1400 मीटर है यह किला संयादरी पर्वत के पूर्व शाखा में फुलेस्वर पहाड़ी क्षेत्र में स्तिथ है।
सभी लोग कहते है की यह किला 2000 साल पुराना है इसका प्रथम उलेक्ख 1328 इसवी में आता है और इसी वर्ष दिल्ली के सुल्तान मुहमद तुगलक ने किलो के एक कोइजासिस्टर,इस कल में कुधियाना के नाम से भी जाना जाता है था और सन 1553 और 1554 के इतिहास पर भी इस किले का उलेक्ख किया गया है।
बाद में यह किला आदिल शाह के सल्तनत में था आदिल शाह के सरकार सहाजी राजे,सन 1647 में दादोजी को सूबेदार बना दिया। इस किला को लश्करी केंद्र बनाया था बाद में सन 1649 इसवी में सहाजी राजे के मुक्ति के लिए इस किले को आदिल शाह के हाथो में फिर से शोप दिया गया था।
और सन 1657 में ही आदिल शाह की मृत्यु के दोरान छत्रपति शिवाजी महाराज ने फिर से स्वराज स्थापित किया। सन 1665 इसवी में पुरान्दर्ष के संधि में मुगलों को ये किला एक बार फिर से मिला,और सन 1670 में ही तानाजी मालुसरे की मदद से छत्रपति शिवाजी महाराज ने वापस से यह स्वाराज स्थापित कर लिया गया।
तानाजी मालुसरे,छत्रपति शिवाजी महाराज के घनिष्ट मित्र और वीर सरदार थे। उन्होंने आपने पुत्र के विवाह से पहले शिवाजी महाराज की इछा का मांग करते हुए कोंढाना किलो को फिर से जितने का शपथ ले लिया। इस लड़ाई में शिवाजी महाराज की सेना को विजय प्राप्त हुई लेकिन तानाजी मालुसरे को वीर गति प्राप्त हुई।
छत्रपति शिवजी महाराज ने जब ये खबर सुनी तब वो बोल पड़े गढ़ आला पंचीम वागेला इसका मतलब किला तो जीत लिया लेकिन मेरा शेर नहीं था उस समय किलेदार उदेबेहन के खिलाफ तानाजी ने यह किला जीता था। और छत्रपति शिवाजी के निधन के बाद सिंहगढ कभी मरठावो के पास तो कभी मुगलों के कब्जो में रहा।
1 जुलाई 1693 में नवाजी बलकवडे बड़े युद्ध कोशाल से सिंहगढ जीता था। लेकिन बाद में पेशवावो के कल में सन 1818 तक सिंहगढ पेशवावो के पास ही था। लेकिन कुछ वर्ष अंग्रेजो के ही था बाद में सन 1890 में लोकमान्य तिलक ने एक जमीन खरीदकर छोटा सा बंगला बनवाया। सन 1910 में लोकमान्य तिलक और महात्मा गाँधी की भेट सिंहगढ पर हुई थी अब हम इस किले के महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे है।
पुणे दरवाजा
पुणे दरवाजा को इसे डॉनजे दरवाजा भी कहते है किले पर इस प्रकार के कुल तिन दरवाजे है और हर दरवाजे के पास तगड़े बुर्ज़ भी है और सबसे ऊपर स्तिथ दरवाजे के पास यादव कुलीन है।
घोडा दरवाजा
घोदयांची पागा का मतलब होता है घोडा को रखने की जगह,पुणे दरवाजा से अन्दर आकर दो पुराणी लेडी जहा पहले घोडा रखा जाता था ऐसा कहा जाता है लेकिन इसकी उचाई उससे कम है।
तोफखाना
पुणे दरवाजा से आगे जाने पर एक बाये तरफ पत्थर की ईमारत है यहाँ पर तोफ और बदूक राखी जाती थी इस ईमारत के अन्दर केमफेयर का निशान भी है।
तिलक बंगला
तिलक बंगला अमृतेस्वर मंदिर के नाजिद लोकमान्य तिलक दवारा सन 1890 में बनवाया गया बंगला है। इस बंगले में खुद लोकमान्य तिलक रहा करते थे।
जाने: शनिवार वाडा किला पुणे का रहस्यमय इतिहास
राजाराम महाराज समाधी
थोड़े और आगे जाते ही छत्रपति शिवाजी महाराज के छोटे पुत्र छत्रपति राजाराम महाराज की समाधी स्थापित है और इसके अन्दर जाने पर कुछ मुर्तिया और शिवलिंग है। राजाराम की पत्नी महारानी ताराबाई इनके कल में यहाँ पर पुरे साल उत्सव मनाया जाता था लेकिन बाद में पेशवावो के कल में महारानी ताराबाई इस समाधी पर आती रहती थी।
कोंढ़ानेस्वर मंदिर
यह मंदिर इस किले का प्रमुख दरवाजा है जो किले का सबसे उचा भाग है इस बले किले भी कहा जाता है। इस बले किले के बीच में एक शिवलिंग है और यह मंदिर को देखने से लगता है की यह यादव लोगो का प्रतीत होता है।
तानाजी मालुसरे समाधी
कोंढ़ेनेश्वर मंदिर से थोड़े आगे जाने पर उतर दिशा में नर वीर तानाजी मालुसरे की समाधी स्थल है।
अमृत्तेस्वर मंदिर
थोडा और आगे जाने पर एक बहुत ही पुराना मंदिर है इस मंदिर में भेरव और भेरवी की मुर्तिया विराजमान है।
देवटाके
इस जगह का निर्माण खास तोर से पीने का पानी को जमा रखने के लिए किया गया था।
कल्याण दरवाजा
यह दरवाजा किले की आग्नीय दिशा में है इस दरवाजा के अन्दर पहरेदारो की रहने की व्यवस्था थी। इस दरवाजे पर लिखे हुए देवनागरी शब्दों में लिखा हुआ प्रतीत होता है। की यह सन 1750 में यह किला नानासाहेब पेशवा के पास था इस किले पर और भी महत्बापूर्ण जगह है जैसे की तानाजी काढा,उधेभन समाधी,गणेश तलब,सरकार वाढा,हाथी तलाब,सती का हाथ,बारूद खाना
सिंहगढ किला सच में पुणे शहर की शान है जहा पर सेकड़ो सालो का इतिहास का राज छुपा हुआ है। और बारिश के दिनों में सिंहगढ किला स्वर्ग से कम नहीं लगता है।